दयावती कंवर का जन्म सन् 1915 में महासमुंद के तमोरा ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री वनमाली सिंह कंवर था। उनके चाचा रघुवर सिंह तमोरा के मालगुजार थे और वे ब्रिटिश शासन की वन नीति से असंतुष्ट थे। इसीलिए जब यतियतनलाल जी महासमुंद में आश्रम स्थापित करने आए, तो दयावती उनसे जुड़ गईं। यह उनके भीतर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक विचारधारा का प्रभाव डाला।
सितंबर 1930 को, रायपुर और महासमुंद के राष्ट्रीय नेताओं ने तमोरा में जंगल सत्याग्रह की शुरुआत करने का निर्णय लिया। 6 सितंबर को तमोरा के निकट लभरा में एक जनसभा आयोजित की गई, जहां ग्रामवासियों को जंगल सत्याग्रह की महत्वपूर्णता के बारे में बताया गया। दयावती भी उस सभा में उपस्थित थी। उन्होंने अपने साथियों और ग्राम की अन्य महिलाओं को सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया। यह सत्याग्रह कई दिनों तक जारी रहा।
12 सितंबर, 1930 को तमोरा में धारा 144 लागू की गई, और कई हजार लोगों की भीड़ जमा हो गई। दयावती हाथ में तिरंगा लेकर लोगों को आंदोलन के लिए आह्वान कर रही थी, जब एक बंदूकधारी पुलिस अधिकारी ने तिरंगा छीनने का प्रयास किया। इस पर दयावती गुस्से में आकर उस पुलिस अधिकारी के साथ भिड़ गई और काफी समय तक जूझते रहे। दयावती ने तिरंगे को सुरक्षित रखने के साथ ही पुलिस के हाथों से उसे बचा लिया और अपने आंदोलन की ओर आगे बढ़ गई। यह घटना गोलीबारी के माहौल को पैदा कर दिया।
किंतु पुलिस अधीक्षक मथुरा प्रसाद दुबे ने दयावती की हिम्मत की सराहना की और उसे विवाद को समाप्त कर दिया। हालांकि, इस घटना ने तमोरा के सत्याग्रह को यादगार बना दिया।